Tuesday, February 17, 2015

"जिनके होठों पे हँसी "--गुलाम अली साहब

जिनके होठों पे हँसी पाँव में छाले होंगे
हाँ वही लोग तेरे चाहने वाले होंगे

मय बरसती है फिज़ाओ में नशा तारी है
अब तो आलम में उजाले ही उजाले होंगे

हम बड़े नाज़ से आये थे तेरी महफ़िल में
क्या खबर थी लैब-ए -इज़हार पे ताले होंगे






"इतना रूखसत " --हसरत

तू इतना रूखसत हो गया है मेरी ज़िन्दगी से
लगता है जैसे खो गया हूँ मैं अब खुद-ही से

हर किसी से इतना रुसवा हो गया हूँ
लगता है जैसे कायनात थी बस तुझी से

तेरा आशिक़ मारा-मारा फिरता हूँ
सोचता हूँ क्या मिला तेरी बंदगी से

खो रहा हूँ धीरे-धीरे खामोशियो में
पाया वही जो मिल गया इस ज़िन्दगी से

Sunday, January 25, 2015

"मैं नज़र से पी रहा हूँ" -- गुलाम अली साहब ग़ज़ल

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समां बदल न जाए
ना उठा नकाब साकी कही रात ढल न जाये

मेरी ज़िन्दगी के मालिक मेरे दिल पे हाथ रखना
तेरे आने की ख़ुशी में मेरा दम निकल न जाये

मेरे अश्क़ भी हैं इसमें ये शराब उबल ना जाये
मेरा जाम छूने वाले तेरा जल ना जाये

मुझे फूकने से पहले मेरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत कही साथ जल ना जाये

"देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना करीब से" -- किशोर दा सॉन्ग


देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना करीब से
चहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से

It is very common that when we know more than we get confused.
"The fundamental cause of the trouble is that in the modern world the stupid are cocksure while the intelligent are full of doubt" --Bertrand Russell

कहने को दिल की बात जिन्हे ढूंढ़ते थे हम
महफ़िल में आ गए हैं वो अपने नसीब से

नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीं का प्यार
कीमत नही चुकाई गयी इस गरीब से
This part song I like the most. It mainly depicts the desires of a girl, she/her parents wants in her life more than love. It reminds me lines from Gulam ali Sahab's
"जिनको  जीने के ढंग आते हैं , वादे अक्सर वो भूल जाते हैं "

तेरी वफ़ा की लाश पे ला मैं ही डाल  दूँ
रेशम का ये कफ़न जो मिला है रकीब से
 

"कसूर ना कोई"

कसूर ना कोई फिर भी क्यू वो मुझसे जुड़ा है
उसकी बेवफ़ाई पर भी दिल क्यू इतना फिदा है

हम तो हर हुसनवले से ज़िंदगी भर बचते रहे
जिस घड़ी वो नज़र  आया, उस वक़्त की ही ये ख्ता है

रह गये तन्हा फिर से राह मे चलते चलते
जैसे ये मेरी मज़िल की मुझसे दिल्लगी करने की अदा है

देखा था जाते हुए मुड के एक बार उन्होने
पर अब वो मुस्कुराहट जाने किसके मर्ज की दवा है

वक़्त गुजर गया उनके साथ बिताए लम्हो की याद मे
कुछ लम्हो का साथ मिल पाता,  पर खुदा की इसमें  नही रज़ा है